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March 17, 2023

बाजरे की खेती को बढ़ावा देने के लिए योगी सरकार के पास मुकम्मल कार्ययोजना

लखनऊ, 17 मार्च। बाजरे की खेती करने वाले किसानों की अब बल्ले-बल्ले होने वाली है। केंद्रीय खाद्य एवं प्रसंस्करण मंत्रालय 2026 से 2027 के दौरान बाजरे पर आधारित उत्पादों के प्रोत्साहन पर 800 करोड़ रुपये खर्च करेगा। ये उत्पाद रेडी टू ईट और रेडी टू सर्व दोनों रूपों में होंगे। सर्वाधिक बाजरा उत्पादक राज्य उप्र को होगा सर्वाधिक लाभ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की सभी योजनाओं का सर्वाधिक लाभ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई वाली योगी सरकार को मिलेगा। खासकर बाजरा को लेकर। इसकी कई वजहें हैं। मुख्यमंत्री योगी निजी तौर पर खेतीबाड़ी एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में रुचि रखते हैं। इसीलिए उनकी पहल पर इंटरनेशनल मिलेट ईयर को सफल बनाने की कार्ययोजना, इसकी शुरुआत के करीब छह महीने पहले ही बन चुकी थी। इसके अलावा मोटे अनाजों, खासकर बाजरे की खेती इस राज्य की परंपरा रही है। उत्तर प्रदेश में देश का सर्वाधिक बाजरा पैदा होता है। बेहतर प्रजाति के बीज, फसल संरक्षा के सामयिक उपायों के जरिये इसे और बढ़ाना संभव है। इन संभावनाओं के नाते ही बाजरे की खेती भी संभावनाओं की खेती हो सकती है। विदेशी मुद्रा भी लाएगा अपना बाजरा बाजरा सहित अन्य मोटे अनाजों के निर्यात पर भी सरकार का फोकस है। खाद्यान्न उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने उन 30 देशों को चिन्हित किया है, जिनमें निर्यात की अच्छी संभावनाएं हैं। इन सभी मांगों को पूरा करने के लिए मोटे अनाजों का उत्पादन बढ़ाने के लिए 21 राज्यों को चिन्हित किया गया है। उल्लेखनीय है कि देश के उत्पादन का करीब 20 फीसदी बाजरा उत्तर प्रदेश में होता है। प्रति हेक्टेयर प्रति किग्रा उत्पादन देश के औसत से अधिक होने के कारण इसकी संभावनाएं बढ़ जाती हैं। तब तो और भी जब अच्छी-खासी पैदावार के बावजूद सिर्फ 1 फीसदी बाजरे का निर्यात होता है। निर्यात होने वाले में अधिकांश साबुत बाजरे होते हैं। लिहाजा प्रसंस्करण के जरिये इसके निर्यात और इससे मिलने वाली विदेशी मुद्रा की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। अद्यतन आंकड़ों के अनुसार राजस्थान में सर्वाधिक, करीब 29 फीसदी रकबे में बाजरे की खेती होती है। इसके बाद महाराष्ट्र करीब 21 फीसदी रकबे के साथ दूसरे नंबर पर है। कर्नाटक 13.46 फीसदी, उत्तर प्रदेश 8.06 फीसदी, मध्य प्रदेश 6.11फीसदी, गुजरात 3.94 फीसदी और तमिलनाडु में करीब 4 फीसदी रकबे में बाजरे की खेती होती है। उत्तर प्रदेश की संभावना इस मामले में बेहतर है, क्योंकि यहां प्रति हेक्टेयर प्रति किग्रा उत्पादन राष्ट्रीय औसत (1195 किग्रा ) की तुलना में 1917 किग्रा है। प्रति हेक्टेयर प्रति किग्रा उत्पादन के मामले में तमिलनाडु नंबर एक (2599 किग्रा) पर है। खेती के उन्नत तौर तरीके से उत्तर प्रदेश के उपज को भी इस स्तर तक लाया जा सकता है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार लगातार इस बाबत प्रयासरत भी है। साल 2022 तक यूपी में बाजरा की खेती का रकबा कुल 9.80 लाख हेक्टेयर है, जिसे बढ़ाकर 10.19 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाने का लक्ष्य है। साथ ही उत्पादकता बढ़ाकर 25.53 क्विंटल प्रति हेक्टेयर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। किसानों को इसका वाजिब दाम मिले, इसके लिए सरकार 18 जिलों में प्रति कुन्तल 2350 रुपये की दर से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर इसकी खरीद भी कर रही है। गेहूं, धान, गन्ने के बाद प्रदेश की चौथी फसल है बाजरा गेहूं, धान और गन्ने के बाद बाजरा उत्तर प्रदेश की चौथी प्रमुख फसल है। खाद्यान्न एवं चारे के रूप में प्रयुक्त होने के नाते यह बहुपयोगी भी है। पोषक तत्वों के लिहाज से इसकी अन्य किसी अनाज से तुलना ही नहीं है, इसलिए इसे “चमत्कारिक अनाज”, “न्यूट्रिया मिलेट्स”, “न्यूट्रिया सीरियल्स” भी कहा जाता है। 2018 में भारत द्वारा मिलेट वर्ष मनाने के बाद बाजरा सहित अन्य मोटे अनाजों की खूबियों से किसान व अन्य लोग भी जागरूक हुए हैं। नतीजतन बाजरे के प्रति हेक्टेयर उपज, कुल उत्पादन और फसल आच्छादन के क्षेत्र (रकबे) में लगातार वृद्धि हुई। हर तरह की भूमि में ले सकते हैं फसल इसकी खेती हर तरह की भूमि में संभव है। न्यूनतम पानी की जरूरत, 50 डिग्री सेल्सियस तापमान पर भी परागण, मात्र 60 महीने में तैयार होना और लंबे समय तक भंडारण योग्य होना इसकी अन्य खूबियां हैं। चूंकि इसके दाने छोटे एवं कठोर होते हैं, ऐसे में उचित भंडारण से यह दो साल या इससे अधिक समय तक सुरक्षित रह सकता है। इसकी खेती में उर्वरक बहुत कम मात्रा में लगता है। साथ ही भंडारण में भी किसी रसायन की जरूरत नहीं पड़ती। लिहाजा यह लगभग बिना लागत वाली खेती है। पोषक तत्वों का खजाना है बाजरा बाजरा पोषक तत्वों का खजाना है। खेतीबाड़ी और मौसम के प्रति सटीक भविष्यवाणी करने वाले कवि घाघ भी बाजरे की खूबियों के मुरीद थे। अपने दोहे में उन्होंने कहा है, “उठ के बजरा या हँसि बोले। खाये बूढ़ा जुवा हो जाय”। बाजरे में गेहूं और चावल की तुलना में 3 से 5 गुना पोषक तत्व होते हैं। इसमें ज्यादा खनिज, विटामिन, खाने के लिए रेशे और अन्य पोषक तत्व मिलते हैं। लसलसापन नहीं होता। इससे अम्ल नहीं बन पाता। लिहाजा सुपाच्य होता है। इसमें उपलब्ध ग्लूकोज धीरे-धीरे निकलता है। लिहाजा यह मधुमेह (डायबिटीज) पीड़ितों के लिए भी मुफीद है। बाजरे में लोहा, कैल्शियम, जस्ता, मैग्निशियम और पोटाशियम जैसे तत्व भरपूर मात्रा मे होते हैं। साथ ही काफी मात्रा में जरूरी फाइबर (रेशा) मिलता है। इसमें कैरोटिन, नियासिन, विटामिन बी6 और फोलिक एसिड आदि विटामिन मिलते हैं। इसमें उपलब्ध लेसीथीन शरीर के स्नायुतंत्र को मजबूत बनाता है। यही नहीं बाजरे में पोलिफेनोल्स, टेनिल्स, फाइटोस्टेरोल्स तथा एंटीऑक्सिडैन्टस प्रचुर मात्रा में मिलते हैं। यही वजह है कि सरकार ने इसे न्यूट्री सीरियल्स घटक की फसलों में शामिल किया है। अपने पोषण संबंधित इन खूबियों की वजह से बाजरा कुपोषण के खिलाफ जंग में एक प्रभावी हथियार साबित हो सकता है। फसल के साथ पर्यावरण मित्र भी है बाजरा बाजरे की फसल पर्यावरण के लिए भी उपयोगी है। यह जलवायु परिवर्तन के असर को कम करती है। धान की फसल जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील है। पानी में डूबी धान की खड़ी फसल में जमीन से ग्रीन हाउस गैस निकलती है। गेहूं तापीय संवेदनशील फसल है। तापमान की वृद्धि का इस पर बुरा असर पड़ता है। क्लाइमेट चेंज के

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अमृत 1.0 में योजनाओं को तेजी से पूर्ण कर रही योगी सरकार

लखनऊ, 17 मार्च। उत्तर प्रदेश के प्रत्येक घर तक जल की आपूर्ति और सीवरेज की सुविधा प्रदान करने के लिए शुरू किए गए अमृत मिशन 1.0 के अंतर्गत योगी सरकार तेजी से कार्यों को पूर्ण कर रही है। 13 मार्च 2023 तक योगी सरकार ने कुल 262 प्रोजेक्ट्स को कंप्लीट कर लिया है। इन प्रोजेक्ट्स की कुल कॉस्ट 5816.55 करोड़ थी, जिसके सापेक्ष सरकार ने 5257.09 करोड़ रुपए का भुगतान भी कर दिया है। इसके अंतर्गत वाटर और सीवरेज के 229 प्रोजेक्ट्स, जबकि एफएसटीपी के 33 प्रोजेक्ट्स पूर्ण किए गए हैं। उल्लेखनीय है कि मिशन के तहत कुल 331 प्रोजेक्ट्स चला जा रहे थे, जिसमें 279 प्रोजेक्ट्स वाटर सप्लाई एवं सीवरेज से जुड़े हैं, वहीं 52 एफएसटीपी से संबंधित हैं। इन सभी प्रोजेक्ट्स की कुल टेंडर कॉस्ट जीएसटी समेत 10941 करोड़ है, जिसमें 8331.64 करोड़ की राशि जारी भी की जा चुकी है। 69 स्कीम्स पर जारी है कार्य प्राप्त जानकारी के अनुसार अभी कुल 69 स्कीम्स पर कार्य चल रहा है। इनमें 50 स्कीम्स वाटर सप्लाई एवं सीवरेज से संबंधित हैं जबकि 19 एफएसटीपी से संबंधित हैं। इनकी जीएसटी समेत टोटल टेंडर कॉस्ट 5124.78 करोड़ रुपए है, जबकि 3074.55 करोड़ का भुगतान किया जा चुका है। वाटर सप्लाई और सीवरेज से जुड़े कंप्लीट प्रोजेक्ट की बात करें तो सीवरेज से संबंधित 3263.87 करोड़ की 79 स्कीम्स पूर्ण की गई हैं तो वहीं वाटर सप्लाई से संबंधित 2429.81 करोड़ की 150 स्कीम्स पर कार्य पूरा हो गया है। गाजियाबाद में सबसे ज्यादा स्कीम्स पूरी अगर वाटर सप्लाई और सीवरेज से संबंधित पूर्ण हुई स्कीम्स को जोनवाइज देखें तो गाजियाबाद जोन में सबसे ज्यादा 61 स्कीम्स का काम पूरा हो चुका है। वहीं, लखनऊ जोन में 46, प्रयागराज और आगरा में 36-36 जबकि गोरखपुर में 28 और कानपुर में 22 स्कीम्स का कार्य पूरा हो चुका है। इस तरह कुल 229 स्कीम्स का काम 100 प्रतिशत पूर्ण हो चुका है तो 11 स्कीम्स ऐसी हैं जिनमें 90 प्रतिशत, 17 में 75-90 प्रतिशत, 13 में 50-75 प्रतिशत, 8 में 25 से 50 प्रतिशत काम हो चुका है। महज एक स्कीम ही है जिसमें 0 से 25 प्रतिशत के बीच काम हुआ है। हाउसहोल्ड कनेक्शंस में भी तेजी हाउसहोल्ड कनेक्शंस की बात करें तो वाटर सप्लाई के अंतर्गत कुल 9.2 लाख का टारगेट था। इसके सापेक्ष 8.7 लाख हाउसहोल्ड कनेक्शन कंप्लीट हो गए हैं, जबकि महज 50 हजार कनेक्शन ही अभी पेंडिंग है। इसी तरह सीवरेज हाउसहोल्ड कनेक्शन की बात करें तो 10.6 लाख के टारगेट के सापेक्ष 7.5 लाख कनेक्शन किए जा चुके हैं और 3.1 लाख अभी फिलहाल पेंडिंग हैं जिन पर तेजी से काम किया जा रहा है।

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सीएम योगी की डिजिटल क्रांति से जुड़ रहे युवा आंत्रप्रेन्योर्स

17 मार्च, लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डिजिटल इंडिया के विजन के अनुरूप सीएम योगी प्रदेश को डिजिटल यूपी बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। सीएम योगी की इस मंशा को पूरा करने के लिए न सिर्फ प्रदेश का सरकारी तंत्र पूरे तन मन के साथ लगा बल्कि कई निजी स्टार्ट अप कंपनियों ने भी इसमें अपना योगदान दिया। खासतौर पर युवा आंत्रप्रेन्योर भी आगे आए, जिन्होंने सीएम योगी के गांव-गांव तक इंटरनेट पहुंचाने के सपने को साकार करने के लिए स्टार्टअप की शुरुआत की। ऐसे ही एक स्टार्टअप ने प्रदेश के ग्रामीण और पिछड़े इलाकों तक डिजिटल क्रांति को बढ़ावा देने के लिए एक 5जी वाईफाई नेटवर्क डेवलप किया है। इस वाईफाई नेटवर्क की खास बात ये है कि लोगों को महीने में 60 जीबी और एक दिन में दो जीबी तक इंटरनेट का यूज करने में कोई चार्ज नहीं देना पड़ रहा है। वहीं इससे ज्यादा का यूज करने पर उन्हे बहुत ही मिनिमम चार्ज देना होता है। इसकी मदद से ग्रामीण भी इंटरनेट क्रांति से जुड़ रहे हैं। ग्रामीण इलाकों के लिए डेवलप किया ओपन पब्लिक वाईफाई नेटवर्क सहारनपुर के कुमार सत्यम ने सहारनपुर के जिन ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की सुविधा नहीं है वहां डिजिटल क्रांति को बढ़ावा देने के लिए एक वाईफाई नेटवर्क डेवलप किया है। उन्होंने पब्लिक के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) के जरिये ओपन पब्लिक वाईफाई नेटवर्क को डेवलप किया है, जिसका प्रयोग कर लोग इंटरनेट के जरिये अपने कामों को ऑनलाइन निपटा रहे हैं। लोगों को महीने में 60 जीबी और एक दिन में दो जीबी तक इंटरनेट का यूज करने में कोई चार्ज नहीं देना पड़ रहा है। वहीं इससे ज्यादा का यूज करने पर उन्हे बहुत ही मिनिमम चार्ज देना होता है। सत्यम ने बताया कि इस स्टार्टअप को पायलट प्रोजेक्ट के तहत सहारनपुर के मां शाकम्भरी देवी मंदिर और उसके आस-पास के इलाके से शुरुआत की गयी थी। उन्होंने बताया कि गांव की स्ट्रीट लाइट और बिजली के खंभों पर एक विशेष प्रकार की डिवाइस लगाई गई। इस डिवाइस से पूरे गांव में वाई-फाई की सुविधा मिलने लगी। यह प्रणाली उन्होंने खुद विकसित की है। इससे यहां पर ऑप्टिकल फाइबर केबल की जरूरत कम हो गई। बच्चों को ई एजुकेशन का भी मिल रहा फायदा उन्होंने बताया कि नेटवर्क में एडवांस एआई के जरिये माइक्रो एस डाटा को फीड किया गया है, जिसमें एनसीआरटी के क्लास 1 से 12 तक के सिलेबस को फीड किया गया है। ऐसे में बच्चे ई एजुकेशन का फायदा भी उठा रहे हैं। यही नहीं लोग अपने मोबाइल से जन सुविधा केंद्र की सुविधा भी ले पा रहे हैं। जन्म तथा मृत्यु सर्टिफिकेट भी खुद बनवा रहे हैं। मां शाकम्भरी देवी मंदिर और उसके आस-पास के 4 हजार लोग इसका लाभ उठा रहे हैं। इसकी सफलता के बाद सहारनपुर शहर और उसके आस पास के 27 गांवों को ओपेन पब्लिक नेटवर्क (वाईफाई) से कनेक्ट करने का काम तेज गति से चल रहा है। फिलहाल सहारनपुर शहर और आस-पास के कुछ गांव में इसका सुविधा का लाभ लोग उठा रहे हैं। उन्होंने बताया कि आने वाले समय में इसका लाभ सहारनपुर के 7 हजार से ज्यादा लोग उठाएंगे। टेली एजुकेशन, ई लाइब्रेरी की भी दी जाएगी सुविधा आंत्रप्रेन्योर कुमार सत्यम ने बताया कि सहारनपुर के बलवंतपुर गांव में एक मॉडल पंचायत को विकसित किया जा रहा है, जिसका उद्​देश्य लोगों को विभिन्न तरह की डिजिटल सेवाएं प्रदान करना है। इसके लिए विलेज इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर (वाई-आईसीसीसी) का उपयोग किया जाएगा। इस केंद्र के जरिये एआई नेटवर्क, ई-शिक्षा, टेली परामर्श सेवाएं, सीसीटीवी, ई-गवर्नेंस सेवाएं और ई-कॉमर्स का प्रशिक्षण दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि पंचायत कार्यालय में लाइब्रेरी को विकसित किया जा रहा है। इसके साथ ही यहां ई लाइब्रेरी, टेली परामर्श के लिए टू-वे कम्युनिकेशन सिस्टम के साथ टेली-एजुकेशन और एजुकेशन के लिए फोन-आधारित एप्लिकेशन तैयार किया जाएगा। इसके साथ ही बच्चों को कोडिंग और माइक्रो क्लासेज की सुविधा दी जाएगी। उन्होंने बताया कि बलवंतपुर गांव की पंचायत में इस मॉडल को विकसित करने के बाद इसे अन्य गांवों में भी शुरू किया जाएगा। कुमार सत्यम ने बताया कि स्टार्टअप को योगी सरकार की मंशा के अनुसार प्रदेश के उन गांवों में भी शुरू किया जाएगा जहां नेटवर्क की समस्या है। उन्होंने बताया कि आने वाले समय में मुजफ्फरपुर, शामली, मेरठ, गाजियाबाद और नोएडा में भी इसकी शुरुआत की जाएगी। युवाओं को प्रोत्साहित कर रही योगी सरकार उल्लेखीय है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश के गांव-गांव को इंटरनेट कनेक्टिविटी से जोड़ने में जी-जान से जुटे हुए हैं। प्रदेश के पग-पग पर हाई स्पीड इंटरनेट उपलब्ध कराते हुए गांव-गांव में शासन से जुड़ी योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए सरकारी स्तर पर लगातार प्रयास हो रहे हैं। यही नहीं, सरकार स्टार्टअप और युवाओं के इनोवेटिव आइडिया को भी पूरा सपोर्ट दे रही है, ताकि प्रदेश के पिछड़े इलाकों तक भी डिजिटल क्रांति को पूरी रफ्तार से अंजाम तक पहुंचाया जा सके। डिजिटल क्रांति की अलग जगाने वाले इन युवा स्टार्टअप आंत्रप्रेन्योर्स को लक्ष्य तक पहुंचाने के लिए योगी सरकार ने भी अपनी योजनाओं के माध्यम से पहल की है। प्रदेश की नई पीढ़ी के हाथों में दो करोड़ स्मार्टफोन और टेबलेट वितरण इसका जीता जागता उदाहरण है जो ग्रामीण एवं पिछड़े क्षेत्रों में डिजिटल क्रांति की अलख जगा रहा है।

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3.19 करोड़ उत्तर पुस्तिकाओं की जांच करेंगे 1.44 लाख परीक्षक

लखनऊ | उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रदेश में नकलविहीन परीक्षा संपन्न कराने के बाद अब बिना किसी बाधा के बोर्ड परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन का भी लक्ष्य रखा है। इसके लिए माध्यमिक शिक्षा परिषद की ओर से पुख्ता तैयारी की गई है। हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन को त्रुटिरहित निरपेक्ष मूल्यांकन के लिए प्रदेश भर में 258 मूल्यांकन केंद्र बनाए गए हैं, जिनमें कुल 3.19 करोड़ उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के लिए करीब 1.44 लाख परीक्षकों को नियुक्त किया गया है। यही नहीं, परीक्षा केंद्रों और परीक्षकों की सुरक्षा के लिए भी चाक चौबंद इंतजाम किए गए हैं। वहीं सीसीटीवी के माध्यम से इसकी निगरानी की भी व्यवस्था की गई है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश सरकार ने हाल ही में रिकॉर्ड समय में बिना किसी बाधा के बोर्ड परीक्षाओं को संपन्न कराने में सफलता प्राप्त की है। 30 वर्षों में पहली बार कोई भी परीक्षा प्रश्नपत्रों के लीक होने, वायरल होने या अन्य किसी वजह से रद नहीं की गई। यही नहीं, सामूहिक नकल की भी कोई घटना नहीं हुई। 258 केंद्रों पर होगा मूल्यांकन कार्य माध्यमिक शिक्षा परिषद के सचिव दिव्यकांत शुक्ल ने बताया कि हाईस्कूल एवं इंटरमीडिएट परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के लिए प्रदेश में कुल 258 मूल्यांकन केंद्र बनाए गए हैं। उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन का कार्य एक अप्रैल तक चलेगा। इस दौरान हाईस्कूल की लगभग 1.86 करोड़ उत्तर पुस्तिकाओं का मूल्यांकन किया जाएगा, जिसके लिए 89,698 परीक्षकों को नियुक्त किया गया है। वहीं इंटरमीडिएट की 1.33 करोड़ उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के लिए 54,235 परीक्षक लगाए गए हैं। इस प्रकार कुल 3.19 करोड़ उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के लिए कुल 1,43,933 परीक्षक नियुक्त किए गए हैं। परीक्षकों को किया गया प्रशिक्षित उन्होंने बताया कि उत्तर पुस्तिकाओं का त्रुटिरहित निरपेक्ष मूल्यांकन हो सके इसके लिए इस बार पहली बार मूल्यांकन में लगाए गए जाने वाले परीक्षकों एवं उपप्रधान परीक्षकों के प्रशिक्षण के लिए उनके उपनियंत्रकों का प्रशिक्षण क्षेत्रीय कार्यालय स्तर पर ऑडियो-वीडियो प्रेजेंटेशन के माध्यम से कराया गया है। क्षेत्रीय कार्यालय मेरठ में 12 मार्च को, बरेली में 13 मार्च को, गोरखपुर में 14 मार्च को, प्रयागराज में 15 मार्च को और वाराणसी में 16 मार्च को प्रशिक्षण संपन्न हो चुका है। मूल्यांकन केंद्रों के उपनियंत्रक या प्रधानाचार्य क्षेत्रीय कार्यालय स्तर पर प्रशिक्षण लेने के बाद अपने-अपने मूल्यांकन केंद्रों पर मूल्यांकन प्रारंभ होने से पहले उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन के लिए नियुक्त परीक्षकों एवं उपप्रधान परीक्षकों को प्रशिक्षित करेंगे। सुरक्षा की भी पुख्ता व्यवस्था सचिव दिव्यकांत शुक्ल ने बताया कि मूल्यांकन केंद्रों पर शुचितापूर्ण मूल्यांकन के लिए प्रत्येक मूल्यांकन केंद्र पर एक-एक स्टेटिक मजिस्ट्रेट को लगाया गया है। साथ ही, प्रत्येक जनपद में स्थित सभी मूल्यांकन केंद्रों के पर्यवेक्षण के लिए प्रत्येक जिले के डायट प्राचार्य को पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है। यही नहीं, मूल्यांकन केंद्रों की सुरक्षा व्यवस्था के भी कड़े इंतजाम किए गए हैं। मूल्यांकन केंद्रों के चारों ओर 100 मीटर की परिधि में धारा 144 लगाई गई है। साथ ही मूल्यांकन अवधि तक कम से कम चार सशस्त्र पुलिस गार्ड की भी तैनाती कराए जाने तथा स्थानीय अभिसूचना इकाइ/पुलिस कर्मियों की सादी वर्दी में तैनाती कराए जाने की व्यवस्था की गई है। सीसीटीवी कैमरों से होगी निगरानी जिस तरह इस बार बोर्ड परीक्षाओं को वायस रिकॉर्डर वाले सीसीटीवी कैमरों के अधीन कराया गया था, उसी तरह मूल्यांकन कार्य की भी निगरानी किए जाने का प्रावधान किया गया है। सचिव दिव्यकांत शुक्ल के अनुसार मूल्यांकन कार्य अनिवार्य रूप से वायस रिकॉर्डर युक्त सीसीटीवी की निगरानी में होगा। मूल्यांकन की समुचित निगरानी के लिए सभी केंद्रों की जनपद और राज्य स्तरीय कंट्रोल रूम से लगातार मॉनीटरिंग कराए जाने की भी व्यवस्था की गई है।

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जब 45 साल बाद इस गांव में हुई धान की रोपाई, तो लोगों की आंखें हुई नम, जानिए वजह

रुद्रप्रयाग. उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों से जहां एक ओर रोजगार की तलाश में युवा पलायन कर रहे हैं, वहीं रुद्रप्रयाग जिले के बर्सू गांव के विजय सेमवाल ने अपने गांव के पसरे सन्नाटे को दूर करने के लिए अपने गांव में 7 साल पहले वापसी की और आज वह युवाओं के सामने मिसाल पेश कर रहे हैं.चमोली जिले से अलग, इस जिले के गठन से पहले ही पलायन ने खूबसूरत बर्सू गांव को अपने आगोश में ले लिया था और यह गांव लगभग खंडहर में तब्दील हो गया था. कभी 60 से अधिक परिवारों की खुशियों का गवाह रहे इस गांव में चारों ओर सन्नाटा छा गया. गांव में आज कई मकान पूरी तरह से टूट चुके हैं या फिर टूटने की कगार कर हैं. कई मकानों में झाड़ियां जम गई हैं. कई घर तो मानो अपनों का रास्ता देख रहे हैं. इस गांव के अधिकतर लोग नजदीक ही पुनाड गांव में बस गए हैं, लेकिन इस गांव से इस सन्नाटे को दूर करने का बीड़ा विजय सेमवाल ने उठाया. उन्होंने 2014 में घर वापसी कर गांव की बंजर भूमि को अकेले जोतने का काम किया. विजय ने यहां सब्जी उत्पादन, पशुपालन, मुर्गी पालन के जरिए रोजगार की एक नई मिसाल पेश की है. 45 साल बाद गांव की माटी में हुई धान रोपाई तो नम हो गईं आंखें विजय सेमवाल बताते हैं कि जहां एक ओर पूरा गांव पानी, शिक्षा, सड़क के अभाव में पलायन कर चुका है, खेत खलियान बंजर हो गए हैं, वहीं जब 45 साल बाद बर्सू गांव में धान रोपाई का अवसर आया, तो सभी की आंखें नम हो गईं. वह बताते हैं कि पहले जब लोग गांव में ज्यादा थे, तो पानी की कमी का सामना सभी ग्रामीणों को करना पड़ता था, लेकिन क्योंकि अब गांव वीरान हो चुके हैं, बहुत कम ही लोग गांव में बचे हैं इसलिए अब आसानी से पानी मिल जाता है, जिससे धान रोपाई की जाती है.

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सालभर के इंतजार के बाद राजधानी देहरादून में लग रहा झंडे जी का मेला, 350 साल पुराना है इतिहास

देहरादून. हर साल की तरह इस बार भी राजधानी देहरादून में झंडे जी का मेला लग चुका है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंच रहे हैं. मेले में कई तरह का सामान आपको सस्ते दामों पर मिल जाता है. हर साल होली के बाद चैत्र मास में लगने वाला झंडे जी का मेला उत्तर भारत का सबसे विशाल मेला माना जाता है क्योंकि यहां हजारों लाखों की संख्या में दूसरे राज्यों से संगत पहुंचती है. बताते चलें कि झंडा मेला बसंत के मौसम में लगाया जाता है. गुरु राम राय द्वारा प्रवर्तित उदासी संप्रदाय के अनुयाई सिखों का प्रमुख धार्मिक उत्सव माना जाता है. इस मेले में न सिर्फ उत्तराखंड के लोग शामिल होते हैं बल्कि उत्तर भारत जिनमें हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली के सिख अनुयायी शामिल होने के लिए आते हैं. क्या है मेले की कहानी मान्यता है कि देहरादून को बसाने वाले गुरु राम राय ने देहरादून के खुदबुड़ा क्षेत्र में अपने साथियों के साथ डेरा डाला था. उसी से देहरादून के नाम की कहानी भी जुड़ी है. यही वह वक्त था जब औरंगजेब ने गढ़वाल के शासक राजा फतेहशाह को एक संस्तुति पत्र देकर देहरादून के तीन गांव अमासूरी, राजपुरा और खुडबुड़ा की जागीर दी थी.  ऐतिहासिक परंपरा रंजीत सिंह ने बताया कि साल 1694 की बात है, जब गुरु राम राय ने यहां गुरुद्वारा स्थापित कर पहली बार झंडा फहराया था. तब से लेकर अब तक हर साल होली के बाद यहां यह ऐतिहासिक गौरवशाली परंपरा मनाई जाती है और भाईचारे व प्रेम के प्रतीक के रूप में झंडे जी को फहराया जाता है. तभी से देहरादून के झंडे मोहल्ले में झन्डे जी का मेला लगता है. जुलूस निकालकर मेले का आगाज़ उन्होंने आगे कहा कि वर्षों से चली आ रही मान्यता के मुताबिक मेले का आगाज महंत की अगुवाई में जुलूस निकालकर किया जाता है और हर तीन वर्षों के बाद दरबार साहिब के प्रांगण में फहराया गए पुराने झंडे की जगह नागसिद्ध के जंगल से काटकर लाए गए खंभे को लगाया जाता है और उसकी पूजा करने के बाद नया झंडा फहराया जाता है. इस दौरान पूरा गुरु राम दरबार साहिब जयजयकार के नारों से गूंज उठता है. इस वर्ष 25000 से ज्यादा संगत झंडे जी के मेले के लिए देहरादून पहुंच चुकी है. इसके अलावा विदेश से भी लोग यहां मत्था टेकने और इस मेले में शामिल होने आए हैं.करतार सिंह ने बताया कि उनके पूर्वज पाकिस्तान में रहते थे. वह वहां से इस मेले में यहां आते थे. अब हम पंजाब से यहां हर साल आते हैं.

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भारतीय वायुसेना में 12वीं पास युवाओं के लिए निकली भर्ती, ऐसे करें आवेदन, पढ़ें डिटेल्स…

Agniveer Vayu Bharti 2023: भारतीय वायुसेना (IAF) में नौकरी करने की इच्छा रखने वाले युवाओं के लिए खुशखबरी है। भारतीय वायुसेना ने अग्निवीर वायु (Agniveer vayu) के पदों पर भर्ती के लिए आवेदन मांगे हैं। इच्छुक और योग्य उम्मीदवार जो इन पदों पर आवेदन करना चाहते हैं वो अधिकारिक वेबसाइट https://agnipathvayu.cdac.in/AV/ पर जाकर रजिस्ट्रेशन करा सकते है। आवेदन करने की आखिरी तारीख 31 मार्च बताई जा रही है। मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक भारतीय वायु सेना (IAF) अग्निवीरवायु भर्ती 2023 के लिए ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया 17 मार्च से शुरू हो गई है। इस भर्ती के लिए केवल अविवाहित भारतीय पुरुष और महिला उम्मीदवारों आवेदन कर सकते हैं।  रजिस्ट्रेशन कराने वाले उम्मीदवारों के लिए परीक्षा आयोजित की जाएगी। परीक्षा में पास होने वाले उम्मीदवारों को इंटरव्यू के बाद ट्रेनिंग के लिए सलेक्ट किया जाएगा. इस भर्ती से संबंधित हर जानकारी आपको नोटिफिकेशन में मिलेगी। शैक्षिणिक योग्यता और आयु सीमा उम्मीदवारों का जन्म 26 दिसंबर 2002 और 26 जून 2006 के बीच होना चाहिए। वहीं शैक्षिक योग्यता की बात करें तो विज्ञान स्ट्रीम में 12वीं पास होना चाहिए। 50 प्रतिशत कम से कम नंबर होने चाहिए।इसके अलावा उम्मीदवारों को सरकारी मान्यता प्राप्त पॉलिटेक्निक संस्थान से इंजीनियरिंग (मैकेनिकल / इलेक्ट्रिकल / इलेक्ट्रॉनिक्स / ऑटोमोबाइल / कंप्यूटर साइंस / इंस्ट्रूमेंटेशन टेक्नोलॉजी / सूचना प्रौद्योगिकी) में तीन साल का डिप्लोमा कोर्स कुल मिलाकर 50% अंकों के साथ और डिप्लोमा कोर्स में अंग्रेजी में 50% अंकों के साथ उत्तीर्ण होना चाहिए। (या इंटरमीडिएट/मैट्रिकुलेशन में, यदि डिप्लोमा पाठ्यक्रम में अंग्रेजी विषय नहीं है) भी आवेदन कर सकते हैं।

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प्रदेश में पर्यटन क्षेत्र में निवेश करने वालों क़ो ऐसे मिलेगी राहत, सरकार ने लिया ये फैसला

उत्तराखंड मंत्रिमंडल ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए नई पर्यटन नीति को मंजूरी दे दी है। इसके तहत सरकार निजी क्षेत्र को निवेश के लिए प्रोत्साहित करेगी। राज्य में जो निवेशक हेली टूरिज्म, कैरावेन टूरिज्म, एडवेंचर टूरिज्म, कैब ऑपरेटर के इलेक्ट्रिक वाहनों में पूंजी निवेश करेगा। उसे सरकार शत-प्रतिशत सब्सिडी देगी। बता दें कि 2018 की पर्यटन नीति में पर्यटन क्षेत्र में निवेश करने पर मात्र 10 प्रतिशत अनुदान का प्रावधान था।नई पर्यटन नीति के तहत कौशल प्रशिक्षण, विपणन, और अपशिष्ट उपचार के क्षेत्र में निवेश करने पर 25 से 50 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाएगी। यह नीति अगले सात साल यानी 2030 तक प्रभावी रहेगी। पर्यटन क्षेत्र में निवेश प्रस्तावों को मंजूरी देने के लिए प्रक्रिया को आसान बनाया जाएगा। इज ऑफ डूइंग बिजनेस की वेबसाइट पर निवेशकों के लिए कॉमन एप्लीकेशन फॉर्म पात्रता प्रमाणपत्र के रूप में मान्य होगा। पुराने निवेशकों को भी मिलेगा लाभ पूंजीगत सब्सिडी का लाभ उन पुराने निवेशकों को भी दिया जाएगा जो आतिथ्य इकाइयों का विस्तार करना चाहते हैं। प्रत्येक निवेश परियोजना की अर्हता के लिए निवेश की सीमा पांच करोड़ रुपये से कम नहीं होगी। इसके अलावा 2018 की पर्यटन ऑपरेशनल गाइड लाइन को भी मंजूरी दी गई है। वहीं, ऋषिकेश में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के ड्रोन शो में जो खर्च हुआ, उसका भुगतान सरकार करेगी। कैबिनेट ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है।

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