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वाराणसी | प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को काशी तमिल संगमम का विधिवत उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने तमिल भाषा में रचित ग्रंथ तिरुक्कुरल का कई अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवादित पुस्तकों का विमोचन और तमिलनाडु से काशी आये छात्र-छात्राओं से संवाद किया। पीएम मोदी ने तमिलनाडु के विभिन्न धर्मस्थलों व मठों के आधिनम (धर्मगुरुओं) को सम्मानित किया। उनके साथ राज्यपाल आनंदीबेन पटेल व सीएम योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान भी मौजूद रहे। गंगा यमुना जैसी अनंत संभावनाओं और सामर्थ्य को समेटे हुए है काशी तमिल संगमम कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने हर हर महादेव, वणक्कम काशी, वणक्कम तमिलनाडु कहकर सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि हमारे देश में संगमों की बड़ी महिमा है। नदियों-धाराओं के संगम से लेकर विचारों और विचाधाराओं, ज्ञान-विज्ञान और समाज व संस्कृतियों के हर संगम को हमने सेलिब्रेट किया है। ये सेलीब्रेशन वास्तव में भारत की विविधताओं और विशेषताओं का सेलीबेशन है। आज हमारे सामने एक ओर पूरे भारत को अपने आप में समेटे हुए हमारी सांस्कृतिक राजधानी काशी है तो दूसरी ओर भारत की प्राचीनता और गौरव का केंद्र हमारा तमिलनाडु और तमिल संस्कृति है। ये संगम भी गंगा यमुना की तरह ही पवित्र है। ये गंगा यमुना जैसी अनंत संभावनाओं और सामर्थ्य को अपने में समेटे हुए है। संस्कृति और सभ्यता के टाइमलेस सेंटर हैं काशी और तमिलनाडु प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे यहां ऋषियों ने कहा है एको हं बहुस्याम, यानी एक ही चेतना अलग अलग रूपों में प्रकट होती है। काशी और तमिलनाडु की फिलॉसफी को हम इसी रूप में देख सकते हैं। काशी और तमिलनाडु दोनों ही संस्कृति और सभ्यता के टाइमलेस सेंटर हैं। दोनों क्षेत्र संस्कृत और तमिल जैसी विश्व की सबसे प्राचीन भाषाओं के कंद्र हैं। काशी में बाबा विश्वनाथ हैं तो तमिलनाडु में रामेश्वर का आशीर्वाद है। काशी और तमिलनाडु दोनों शिवमय और शक्तिमय है। एक स्वयं में काशी है तो तमिलनाडु में दक्षिण काशी है। काशी और कांची दोनों का सप्तपुरियों में महत्वपूर्ण स्थान है। दोनों संगीत, साहित्य और कला का अद्भुत स्रोत हैं। काशी का तबला है और तमिलनाडु का तन्नुमाई। काशी में बनारसी साड़ी है तो तमिलनाडु का कांजीवरम सिल्क पूरी दुनिया में फेमस है। दोनों भारतीय अध्यात्म के सबसे महान आचार्यों की जन्मभूमि और कर्मभूमि है। काशी भक्त तुलसी की धरती है तो तमिलनाडु संत तिरुवल्लुवर की भक्तिभूमि है। जीवन के हर क्षेत्र में काशी और तमिलनाडु की एक ऊर्जा के दर्शन होते हैं। तमिल दिलों में काशी के लिए अविनाशी प्रेम ना अतीत में कभी मिटा ना भविष्य में कभी मिटेगा आज भी तमिल विवाह परंपरा में काशी यात्रा का जिक्र होता है। तमिल युवाओं की नयी यात्रा से काशी यात्रा को जोड़ा जाता है। ये तमिल दिलों में काशी के लिए अविनाशी प्रेम ना अतीत में कभी मिटा ना भविष्य में कभी मिटेगा। यही एक भारत श्रेष्ठ भारत की परंपरा है, जिसे हमारे पूर्वजों ने जिया था। आज ये काशी तमिल संगमम फिर से उस गौरव को आगे बढ़ा रहा है। तमिलनाडु के लोगों ने पीढ़ियों से काशी को संवारा है प्रधानमंत्री ने कहा कि काशी के निर्माण और विकास में तमिलनाडु ने अभूतपूर्व विकास दिया। तमिलनाडु के डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को आज भी काशी याद करती है। ये बीएचयू के पूर्व कुलपति रहे हैं। महान वैदिक विद्वान राजेश्वर शास्त्री जी ने यहां रामघाट पर सांगवेद विद्यायल की स्थापना की। पट्टाभिराम शास्त्री जी हनुमान घाट पर रहे। उन्हें भी काशी में हमेशा याद किया जाता है। आप काशी भ्रमण करेंगे तो देखेंगे कि हरिश्चंद्र घाट पर तमिल शैली का काशी कामकोटी पंचायतन मंदिर बना है। केदारघाट पर 200 साल पुराना कुमारस्वामी मठ और मार्कण्डेय आश्रम है। हनुमानघाट और केदारघाट में बड़ी संख्या में तमिलनाडु के लोग रहते हैं, जिन्होंने पीढ़ियों से काशी में अपना योगदान दिया है। भारत ने स्वाभाविक सांस्कृतिक एकता को जिया है उन्होंने कहा कि तमिलनाडु की एक और महान विभूति महान कवि सुब्रमण्यम भारती लंबे समय तक काशी में रहे। यहीं मिशन कॉलेज और जयनारायण कॉलेज में उन्होंने पढ़ाई की। अपनी पॉपुलर मूछें भी उन्होंने यहीं रखी थी। महापुरुषों ने काशी और तमिलनाडु को एक सूत्र में बांधकर रखा है। काशी तमिल संगमम का ये आयोजन तब हो रहा है जब भारत ने अपनी आजादी के अमृत काल में प्रवेश किया है। भारत वो राष्ट्र है जिसने हजारों वर्ष से एक दूसरे के मनोभाव को जानकर, सम्मान करते हुए स्वाभाविक सांस्कृतिक एकता को जिया है। हमारे देश में सुबह उठकर 12 ज्योर्तिलिंगों को याद करने की परंपरा है। हम स्नान करते समय भी गंगा यमुना से लेकर गोदावरी और कावेरी तक की नदियों में स्नान करने की भावना प्रकट करते हैं। काशी तमिल संगमम राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए ऊर्जा देगा प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें आजादी के बाद हजारों वर्षों की परंपरा और विरासत को मजबूत करना चाहिए था, लेकिन दुर्भाग्य से इसके लिए बहुत प्रयास नहीं किये गये। काशी तमिल संगमम आज इस संकल्प के लिए एक प्लेटफार्म बनेगा। हमें राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए ऊर्जा देगा। विष्णुपुराण का एक श्लोक हमें बताता है कि भारत का स्वरूप क्या है। भारत वो है जो हिमलाय से लेकर हिन्द महासागर तक सभी विविधताओं को समेटे हुए है और उसकी हर संतान भारतीय है। तमिल संगम साहित्य में गंगा का बखान किया गया है। तिरुक्कुरल में काशी की महिमा गाई गयी है। ये भौतिक दूरियां और ये भाषा भेद को तोड़ने वाला अपनत्व ही था जो स्वामी कुमरगुरुपर तमिलनाडु से काशी आए और इसे अपनी कर्मभूमि बनाया। स्वामी कुमरगुरुपर ने यहां केदारघाट पर केदारेश्वर मंदिर का निर्माण कराया। बाद में उनके शिष्यों ने तंजावुर जिले में काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया। दक्षिण के विद्वानों के भारतीय दर्शन को समझे बिना हम भारत को नहीं जान सकते तमिलनाडु में जन्मे रामानुजाचार्य ने काशी से कश्मीर तक की यात्रा की थी। आज भी उनके ज्ञान को आधार माना जाता है। मेरे शिक्षक ने मुझसे कहा था कि तुमने रामायण महाभारत पढ़ी होगी, लेकिन अगर इसे गहराई से समझना है तो राजाजी ने जो महाभारत लिखी है उसे जरूर पढ़ना। रामानुजाचार्या, शंकराचार्य, राजाजी और सर्वपल्ली राधाकृष्णन तक दक्षिण के विद्वानों के भारतीय दर्शन को समझे बिना हम भारत को नहीं जान सकते। तमिल विरासत को बचाना 130 करोड़ देशवासियों की जिम्मेदारी प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने अपनी विरासत पर गर्व का पंच प्राण सामने रखा है। दुनिया में किसी भी देश के पास कोई प्राचीन विरासत होती है तो वो उसपर गर्व करता है। उसे गर्व से दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है। मिस्र के पिरामिड से लेकर इटली के कॉलेजियम जैसे कितने ही उदाहरण हमारे सामने हैं। हमारे पास भी दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल है। आज तक ये भाषा उतनी ही पॉपुलर और लाइव है। दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा भारत में है ये बात जब दुनियावालों को पता चलती है तो उन्हें आश्चर्य होता है, मगर हम उसके गौरवगान में पीछे रहते हैं। ये हम 130 करोड़ देशवासियों की जिम्मेदारी है कि हमें तमिल की इस विरासत को बचाना है। उसे समृद्ध करना है। तमिल को भुलाएंगे तो देश का नुकसान होगा। तमिल को बंधनों में बांध कर रखेंगे तो भी देश का नुकसान होगा। हमें भाषा भेद को दूर करें भावनात्मक एकता कायम करना है। मेरी काशी आपके सत्कार में कोई कमी नहीं छोड़ेगी प्रधानमंत्री ने कहा कि काशी तमिल संगमम शब्दों से ज्यादा अनुभव का विषय है। तमिलनाडु से आये हुए सभी अतिथियों की काशी यात्रा उनकी मेमोरी से जुड़ने वाली है। ये आपके जीवन की पूंजी बन जाएगी। मेरी काशी आपके सत्कार में कोई कमी नहीं छोड़ेगी। मैं चाहता हूं कि तमिलनाडु और दक्षिण के दूसरे राज्यों में भी ऐसे आयोजन हों और देश के दूसरे राज्य के लोग वहां जाएं। ये बीज राष्ट्रीय एकता का वटवृक्ष बने। राष्ट्रहित ही हमारा हित है।

वाराणसी | प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को काशी तमिल संगमम का विधिवत उद्घाटन किया। इस दौरान उन्होंने तमिल भाषा में रचित ग्रंथ तिरुक्कुरल का कई अन्य भारतीय भाषाओं में अनुवादित पुस्तकों का विमोचन और तमिलनाडु से काशी आये छात्र-छात्राओं से संवाद किया। पीएम मोदी ने तमिलनाडु के विभिन्न धर्मस्थलों व मठों के आधिनम (धर्मगुरुओं) को सम्मानित किया। उनके साथ राज्यपाल आनंदीबेन पटेल व सीएम योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान भी मौजूद रहे।

गंगा यमुना जैसी अनंत संभावनाओं और सामर्थ्य को समेटे हुए है काशी तमिल संगमम
कार्यक्रम के दौरान अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने हर हर महादेव, वणक्कम काशी, वणक्कम तमिलनाडु कहकर सभी अतिथियों का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि हमारे देश में संगमों की बड़ी महिमा है। नदियों-धाराओं के संगम से लेकर विचारों और विचाधाराओं, ज्ञान-विज्ञान और समाज व संस्कृतियों के हर संगम को हमने सेलिब्रेट किया है। ये सेलीब्रेशन वास्तव में भारत की विविधताओं और विशेषताओं का सेलीबेशन है। आज हमारे सामने एक ओर पूरे भारत को अपने आप में समेटे हुए हमारी सांस्कृतिक राजधानी काशी है तो दूसरी ओर भारत की प्राचीनता और गौरव का केंद्र हमारा तमिलनाडु और तमिल संस्कृति है। ये संगम भी गंगा यमुना की तरह ही पवित्र है। ये गंगा यमुना जैसी अनंत संभावनाओं और सामर्थ्य को अपने में समेटे हुए है।

संस्कृति और सभ्यता के टाइमलेस सेंटर हैं काशी और तमिलनाडु
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे यहां ऋषियों ने कहा है एको हं बहुस्याम, यानी एक ही चेतना अलग अलग रूपों में प्रकट होती है। काशी और तमिलनाडु की फिलॉसफी को हम इसी रूप में देख सकते हैं। काशी और तमिलनाडु दोनों ही संस्कृति और सभ्यता के टाइमलेस सेंटर हैं। दोनों क्षेत्र संस्कृत और तमिल जैसी विश्व की सबसे प्राचीन भाषाओं के कंद्र हैं। काशी में बाबा विश्वनाथ हैं तो तमिलनाडु में रामेश्वर का आशीर्वाद है। काशी और तमिलनाडु दोनों शिवमय और शक्तिमय है। एक स्वयं में काशी है तो तमिलनाडु में दक्षिण काशी है। काशी और कांची दोनों का सप्तपुरियों में महत्वपूर्ण स्थान है। दोनों संगीत, साहित्य और कला का अद्भुत स्रोत हैं। काशी का तबला है और तमिलनाडु का तन्नुमाई। काशी में बनारसी साड़ी है तो तमिलनाडु का कांजीवरम सिल्क पूरी दुनिया में फेमस है। दोनों भारतीय अध्यात्म के सबसे महान आचार्यों की जन्मभूमि और कर्मभूमि है। काशी भक्त तुलसी की धरती है तो तमिलनाडु संत तिरुवल्लुवर की भक्तिभूमि है। जीवन के हर क्षेत्र में काशी और तमिलनाडु की एक ऊर्जा के दर्शन होते हैं।

तमिल दिलों में काशी के लिए अविनाशी प्रेम ना अतीत में कभी मिटा ना भविष्य में कभी मिटेगा
आज भी तमिल विवाह परंपरा में काशी यात्रा का जिक्र होता है। तमिल युवाओं की नयी यात्रा से काशी यात्रा को जोड़ा जाता है। ये तमिल दिलों में काशी के लिए अविनाशी प्रेम ना अतीत में कभी मिटा ना भविष्य में कभी मिटेगा। यही एक भारत श्रेष्ठ भारत की परंपरा है, जिसे हमारे पूर्वजों ने जिया था। आज ये काशी तमिल संगमम फिर से उस गौरव को आगे बढ़ा रहा है।

तमिलनाडु के लोगों ने पीढ़ियों से काशी को संवारा है
प्रधानमंत्री ने कहा कि काशी के निर्माण और विकास में तमिलनाडु ने अभूतपूर्व विकास दिया। तमिलनाडु के डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को आज भी काशी याद करती है। ये बीएचयू के पूर्व कुलपति रहे हैं। महान वैदिक विद्वान राजेश्वर शास्त्री जी ने यहां रामघाट पर सांगवेद विद्यायल की स्थापना की। पट्टाभिराम शास्त्री जी हनुमान घाट पर रहे। उन्हें भी काशी में हमेशा याद किया जाता है। आप काशी भ्रमण करेंगे तो देखेंगे कि हरिश्चंद्र घाट पर तमिल शैली का काशी कामकोटी पंचायतन मंदिर बना है। केदारघाट पर 200 साल पुराना कुमारस्वामी मठ और मार्कण्डेय आश्रम है। हनुमानघाट और केदारघाट में बड़ी संख्या में तमिलनाडु के लोग रहते हैं, जिन्होंने पीढ़ियों से काशी में अपना योगदान दिया है।

भारत ने स्वाभाविक सांस्कृतिक एकता को जिया है
उन्होंने कहा कि तमिलनाडु की एक और महान विभूति महान कवि सुब्रमण्यम भारती लंबे समय तक काशी में रहे। यहीं मिशन कॉलेज और जयनारायण कॉलेज में उन्होंने पढ़ाई की। अपनी पॉपुलर मूछें भी उन्होंने यहीं रखी थी। महापुरुषों ने काशी और तमिलनाडु को एक सूत्र में बांधकर रखा है। काशी तमिल संगमम का ये आयोजन तब हो रहा है जब भारत ने अपनी आजादी के अमृत काल में प्रवेश किया है। भारत वो राष्ट्र है जिसने हजारों वर्ष से एक दूसरे के मनोभाव को जानकर, सम्मान करते हुए स्वाभाविक सांस्कृतिक एकता को जिया है। हमारे देश में सुबह उठकर 12 ज्योर्तिलिंगों को याद करने की परंपरा है। हम स्नान करते समय भी गंगा यमुना से लेकर गोदावरी और कावेरी तक की नदियों में स्नान करने की भावना प्रकट करते हैं।

काशी तमिल संगमम राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए ऊर्जा देगा
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमें आजादी के बाद हजारों वर्षों की परंपरा और विरासत को मजबूत करना चाहिए था, लेकिन दुर्भाग्य से इसके लिए बहुत प्रयास नहीं किये गये। काशी तमिल संगमम आज इस संकल्प के लिए एक प्लेटफार्म बनेगा। हमें राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने के लिए ऊर्जा देगा। विष्णुपुराण का एक श्लोक हमें बताता है कि भारत का स्वरूप क्या है। भारत वो है जो हिमलाय से लेकर हिन्द महासागर तक सभी विविधताओं को समेटे हुए है और उसकी हर संतान भारतीय है। तमिल संगम साहित्य में गंगा का बखान किया गया है। तिरुक्कुरल में काशी की महिमा गाई गयी है। ये भौतिक दूरियां और ये भाषा भेद को तोड़ने वाला अपनत्व ही था जो स्वामी कुमरगुरुपर तमिलनाडु से काशी आए और इसे अपनी कर्मभूमि बनाया। स्वामी कुमरगुरुपर ने यहां केदारघाट पर केदारेश्वर मंदिर का निर्माण कराया। बाद में उनके शिष्यों ने तंजावुर जिले में काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया।

दक्षिण के विद्वानों के भारतीय दर्शन को समझे बिना हम भारत को नहीं जान सकते
तमिलनाडु में जन्मे रामानुजाचार्य ने काशी से कश्मीर तक की यात्रा की थी। आज भी उनके ज्ञान को आधार माना जाता है। मेरे शिक्षक ने मुझसे कहा था कि तुमने रामायण महाभारत पढ़ी होगी, लेकिन अगर इसे गहराई से समझना है तो राजाजी ने जो महाभारत लिखी है उसे जरूर पढ़ना। रामानुजाचार्या, शंकराचार्य, राजाजी और सर्वपल्ली राधाकृष्णन तक दक्षिण के विद्वानों के भारतीय दर्शन को समझे बिना हम भारत को नहीं जान सकते।

तमिल विरासत को बचाना 130 करोड़ देशवासियों की जिम्मेदारी
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने अपनी विरासत पर गर्व का पंच प्राण सामने रखा है। दुनिया में किसी भी देश के पास कोई प्राचीन विरासत होती है तो वो उसपर गर्व करता है। उसे गर्व से दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है। मिस्र के पिरामिड से लेकर इटली के कॉलेजियम जैसे कितने ही उदाहरण हमारे सामने हैं। हमारे पास भी दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा तमिल है। आज तक ये भाषा उतनी ही पॉपुलर और लाइव है। दुनिया की सबसे प्राचीन भाषा भारत में है ये बात जब दुनियावालों को पता चलती है तो उन्हें आश्चर्य होता है, मगर हम उसके गौरवगान में पीछे रहते हैं। ये हम 130 करोड़ देशवासियों की जिम्मेदारी है कि हमें तमिल की इस विरासत को बचाना है। उसे समृद्ध करना है। तमिल को भुलाएंगे तो देश का नुकसान होगा। तमिल को बंधनों में बांध कर रखेंगे तो भी देश का नुकसान होगा। हमें भाषा भेद को दूर करें भावनात्मक एकता कायम करना है।

मेरी काशी आपके सत्कार में कोई कमी नहीं छोड़ेगी
प्रधानमंत्री ने कहा कि काशी तमिल संगमम शब्दों से ज्यादा अनुभव का विषय है। तमिलनाडु से आये हुए सभी अतिथियों की काशी यात्रा उनकी मेमोरी से जुड़ने वाली है। ये आपके जीवन की पूंजी बन जाएगी। मेरी काशी आपके सत्कार में कोई कमी नहीं छोड़ेगी। मैं चाहता हूं कि तमिलनाडु और दक्षिण के दूसरे राज्यों में भी ऐसे आयोजन हों और देश के दूसरे राज्य के लोग वहां जाएं। ये बीज राष्ट्रीय एकता का वटवृक्ष बने। राष्ट्रहित ही हमारा हित है।

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लैंड फॉर जॉब केस में लालू प्रसाद को बड़ा झटका

रेलवे में नौकरी के बदले जमीन के मामले में सीबीआई की तरफ से दायर केस को रद्द कराने के लिए तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उन्होंने कोर्ट में य़ाचिका दाखिल कर सीबीआई के लैंड फॉर जॉब केस को रद्द करने की मांग की थी लेकिन उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। दिल्ली हाई कोर्ट ने लालू प्रसाद की याचिका को खारिज कर दिया है।

“ठग्स ऑफ गोवा” से बड़े पर्दे पर धमाल मचाने आ रहे हैं कानपुर के सूर्यांश त्रिपाठी

कानपुर के होनहार युवक सूर्यांश त्रिपाठी अब बड़े पर्दे पर धमाकेदार एंट्री करने जा रहे हैं। फिल्म “ठग्स ऑफ गोवा” में लीड रोल निभा रहे सूर्यांश की यह फिल्म 30 मई को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है। मूल रूप से कानपुर के रहने वाले सूर्यांश ने मुंबई में अपनी मेहनत और प्रतिभा के दम पर विज्ञापन फिल्मों, मॉडलिंग और वेब सीरीज में अपनी खास पहचान बनाई है। अब वे एक बार फिर सुर्खियों में हैं, इस बार एक मुख्य अभिनेता के रूप में। फिल्म “ठग्स ऑफ गोवा” उनके करियर का एक नया और बड़ा मुकाम साबित हो सकती है। दर्शकों को उनसे काफी उम्मीदें हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि सूर्यांश बड़े पर्दे पर क्या जादू बिखेरते हैं। क्राइम थ्रिलर सिनेमा जगत में एक ऐसा जॉनर रहा है जिसे दर्शकों का बहुत बड़ा वर्ग पसन्द करता आया है. इसी शैली का एक सिनेमा “ठग्स ऑफ गोवा” 30 मई 2025 को सिनेमाघरों मे रिलीज के लिए तैयार है. साई पाटिल फिल्म फैक्ट्री के बैनर तले बनी इस पिक्चर के निर्माता साई पाटिल, सह निर्माता योजना पाटिल हैं. फिल्म के निर्देशक साई पाटिल ने इसकी कहानी, पटकथा और संवाद भी लिखे हैँ. गोवा में शूट की गई इस फिल्म का संगीत रवि ने दिया है. इस फिल्म में सूर्यांश त्रिपाठी, गायत्री बंसोडे, रुचिका सिंह, मनवीर सिंह, अंकिता देसाई, विक्की मोटे, गिरिराज कुलकर्णी, सागर पब्बाले, हर्षित उपाध्याय, प्रणय तेली, सुनील कुसेगांवकर, राजदेव जमदादे, योगेश कुमावत, नवनाथ श्रीमंडिलकर जैसे कलाकारों ने अभिनय किया है. गोवा में सेट यह कहानी अमर अग्निहोत्री के इर्द-गिर्द घूमती है, जो एक कुख्यात ठग है. वह अपने तीन साथियों सलोनी, नेहा और विक्की के साथ मिलकर लोगों को ठगकर मौज करता है। धोखे के खेल में तब एक बुरा मोड़ आता है जब क्राइम ब्रांच ऑफिसर विजय नेहा को धमकाता है और उसे भ्रष्ट मंत्री के बेटे राकेश के करीबी लोगों के बीच घुसकर काले धन से जुड़े दस्तावेज चुराने के लिए मजबूर करता है। जब नेहा अमर को इस खतरनाक काम के बारे में बताती है, तो तनाव बढ़ जाता है। अमर और ऑफिसर विजय के बीच एक भयंकर लड़ाई शुरू हो जाती है. अंत में क्या होता है इसके लिए आपको फिल्म देखने का इन्तेज़ार करना पड़ेगा.

कानपुर में एस्थेटिक केयर कॉस्मेटोलॉजी में आधुनिक तकनीकों से स्किन, हेयर और फैट की उपचार सेवाएं उपलब्ध

कानपुर: शहरवासियों के लिए खुशखबरी है कि अब स्किन और हेयर से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए अत्याधुनिक तकनीक पर आधारित इलाज एस्थेटिक केयर कॉस्मेटोलॉजी में उपलब्ध है। डॉ. गौरी मिश्रा ने बताया कि क्लिनिक में मेड इन कोरिया की न्यू रिच मशीन द्वारा बॉडी लेज़र हेयर रिडक्शन किया जाता है, जिससे अनचाहे बालों के साथ-साथ स्किन पर मौजूद दाग-धब्बों और पिग्मेंटेशन से भी छुटकारा पाया जा सकता है। स्किन टोन को निखारने और फ्लॉलेस लुक पाने के लिए यह मशीन अत्यंत प्रभावी साबित हो रही है। साथ ही, बालों की समस्याओं के समाधान के लिए PRP थैरेपी, GFC थैरेपी और हेयर रीग्रोथ थैरेपी जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है, जिससे हेयर फॉल, हेयर थिनिंग और गंजेपन जैसी समस्याओं में उल्लेखनीय सुधार देखा गया है। यह क्लिनिक अब हेयर और स्किन हेल्थ के लिए एक भरोसेमंद सेंटर बनकर उभरा है। एस्थेटिक केयर कॉस्मेटोलॉजी अब संपूर्ण बॉडी के सौंदर्य और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए वन-स्टॉप सेंटर बन गया है। यहां उपलब्ध कायो लेज़र मशीन की मदद से शरीर के किसी भी हिस्से से फैट को सुरक्षित और प्रभावी तरीके से कम किया जा सकता है। यह प्रक्रिया न केवल वजन घटाने में सहायक है, बल्कि बॉडी शेप को भी आकर्षक बनाती है। स्किन, हेयर और बॉडी फैट से जुड़ी सभी आधुनिक थैरेपीज़ अब एक ही स्थान पर उपलब्ध हैं, जिससे मरीजों को अलग-अलग जगह भटकने की आवश्यकता नहीं पड़ती। विशेष रूप से शादी या अन्य विशेष अवसरों को ध्यान में रखते हुए, ‘ग्लोइंग स्किन’ के लिए आवश्यक स्किन क्लीनिंग, ब्राइटनिंग और हाइड्रेशन थैरेपीज़ अब स्थानीय स्तर पर सुलभ हैं। डॉ. गौरी मिश्रा के मार्गदर्शन में संचालित यह सेंटर कानपुर में कॉस्मेटोलॉजी और एस्थेटिक उपचार का नया केंद्र बिंदु बनता जा रहा है, जहां हर व्यक्ति को उनकी ज़रूरत के अनुसार व्यक्तिगत देखभाल मिल रही है।

आई० ए० पी० कानपुर और पारस हेल्थ ने ऑर्थोपेडिक्स और न्यूरोसर्जरी पर विशेष मेडिकल (सी.एम.ई.) का आयोजन किया

पारस हेल्थ, कानपुर एवं इंडियन एसोसिएशन ऑफ फिजियोथैरेपिस्ट (आई० ए० पी०), कानपुर सेंट्रल शाखा के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय कंटीन्यूइंग मेडिकल एजुकेशन (CME) प्रोग्राम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम रॉयल क्लिफ होटल में संपन्न हुआ, जिसमें शहर के प्रमुख सर्जन एवं फिजियोथैरेपिस्ट्स ने भाग लिया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य चिकित्सा के क्षेत्र में आपसी संवाद को बढ़ावा देना, नवीनतम तकनीकों की जानकारी साझा करना तथा समन्वित रूप से मरीजों को बेहतर उपचार उपलब्ध कराना था। कार्यक्रम में सहभागियों को ऑर्थोपेडिक्स और न्यूरोसर्जरी के अद्यतन पहलुओं पर विस्तार से जानकारी दी गई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में अलीगढ़ से पधारे डॉ. के. के. वर्मा (सेक्रेटरी, आई० ए० पी० उत्तर प्रदेश) एवं वरिष्ठ ऑर्थोपेडिक न्यूरोसर्जन डॉ. गोपाल शुक्ल उपस्थित रहे। डॉ. शुक्ल ने अपने सत्र में कमर दर्द से जुड़े विभिन्न जटिल मामलों पर प्रकाश डालते हुए यह बताया कि किस प्रकार फिजियोथैरेपी की मदद से मरीजों को शीघ्र राहत मिल सकती है। इस सफल आयोजन ने फिजियोथैरेपिस्ट एवं चिकित्सकों को एक साझा मंच प्रदान किया, जिससे भविष्य में और बेहतर चिकित्सा सेवा की दिशा में प्रयास संभव होंगे।

BR:पीएम मोदी 29 को बिहार दौरे पर, विकास की सौगात संग चुनावी मंथन

Patna : . प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 29 मई को दो दिवसीय बिहार दौरे पर आ रहे हैं. ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह प्रधानमंत्री की पहली बिहार यात्रा है. इस यात्रा के दौरान वे पटना और विक्रमगंज में कई विकास परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास करेंगे. भाजपा प्रधानमंत्री के स्वागत की तैयारियों में जुटी है. पीएम मोदी सबसे पहले पटना एयरपोर्ट का उद्घाटन करेंगे, उसके बाद बिहटा एयरपोर्ट की आधारशिला रखेंगे. 30 मई को वे विक्रमगंज में एक विशाल जनसभा को संबोधित करेंगे और लगभग 50 हजार करोड़ रुपये की परियोजनाओं की सौगात देंगे.   पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल के अनुसार, प्रधानमंत्री पटना एयरपोर्ट से बीजेपी कार्यालय तक रोड शो करेंगे. जगह-जगह पुष्पवर्षा के साथ कार्यकर्ता उनका स्वागत करेंगे. बीजेपी कार्यालय में पीएम मोदी सांसदों, विधायकों, विधान पार्षदों और प्रदेश पदाधिकारियों के साथ बैठक कर जमीनी स्तर पर संगठन की स्थिति की समीक्षा भी करेंगे. यह बैठक आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी के लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जा रही

BR:बिहार में दिव्यांग कोटे में डोमिसाइल नीति लागू

बिहार सरकार ने राज्य की सरकारी नौकरियों और उच्च शैक्षणिक संस्थानों में दिव्यांग आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला लिया है। अब दिव्यांग कोटे का लाभ केवल बिहार के मूल निवासियों को ही मिलेगा। इसके तहत डोमिसाइल (स्थानीय निवासी) नीति को लागू कर दिया गया है। इस संबंध में सामान्य प्रशासन विभाग ने शुक्रवार को आधिकारिक आदेश भी जारी कर दिया है। निर्णय के अनुसार, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत मिलने वाला आरक्षण अब केवल बिहार के दिव्यांग उम्मीदवारों के लिए ही मान्य होगा। जानकारी के मुताबिक, अधिनियम के तहत दिव्यांगजन को सरकारी नौकरियों में 4% क्षैतिज आरक्षण, उच्च शिक्षा संस्थानों में 5% क्षैतिज आरक्षण दिया जाता है। अब तक इस आरक्षण का लाभ दूसरे राज्यों के अभ्यर्थियों को भी मिल रहा था, जिससे बिहार के दिव्यांग उम्मीदवारों को उचित अवसर नहीं मिल पा रहा था। राज्य सरकार ने इसको समाप्त करने के लिए डोमिसाइल नीति लागू करने का निर्णय लिया। सरकारी नौकरियों के सामान्य कोटे में पूर्ववत व्यवस्था लागू रहेगी, उसमें डोमिसाइल नीति लागू नहीं की गई है। बता दें है कि 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में 23 लाख से अधिक दिव्यांगजन हैं, जिनमें से लगभग 16 लाख को दिव्यांगता प्रमाण पत्र जारी किया जा चुका है।