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Manipur Violence : मणिपुर में चल रही हिंसा के पीछे आखिर क्या है वजह ?

नई दिल्ली : मणिपुर में हिंसा की घटनाएं कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रही हैं। हिंसा और आगजनी की इन घटनाओं के बीच बीजेपी नेताओं के घरों और ऑफिस को निशाना बनाया गया है। मणिपुर में केंद्रीय मंत्री आर.के. रंजन सिंह के आवास को गुस्साई भीड़ द्वारा आग के हवाले के किए जाने के अगले ही दिन बीजेपी के कई ऑफिस में तोड़फोड़ की खबर सामने आई। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष शारदा देवी के आवास पर भी हमला किया गया।

मणिपुर में चल रही जातीय हिंसा को महीने भर से ऊपर हो गया है। मणिपुर में एक महीने पहले मेइती और कुकी समुदायों के बीच भड़की जातीय हिंसा में 100 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है तथा कई लोगों के घायल होने की भी खबर है। इसी के चलते केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी पिछले महीने मणिपुर का दौरा किया था और राज्य में शांति बहाल करने के अपने प्रयासों के तहत विभिन्न वर्गों के लोगों से मुलाकात की थी। बावजूद इसके हिंसा की घटनाएं कम नहीं हुई और विपक्षी दल इसको लेकर बीजेपी पर हमलावर हैं।

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्थिति का आकलन करने और केंद्रीय बलों के बेहतर इस्तेमाल के लिए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के महानिदेशक एस. एल. थाउसेन को मणिपुर भेजा गया है। वर्तमान में, राज्य पुलिस बलों के अलावा मणिपुर में लगभग 30,000 केंद्रीय सुरक्षाकर्मी तैनात हैं। इन बलों में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की लगभग आठ बटालियन, सेना की 80 टुकड़ियां और असम राइफल्स की 67 टुकड़ियां शामिल हैं। इतना सब होने के बाद भी हिंसा पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका है।

मणिपुर में बीजेपी की सरकार है। जिस तरीके से तेजी से बीजेपी नेताओं के खिलाफ गुस्सा बढ़ा है उसके पीछे वजह बताई जा रही है मैतेई समुदाय का गुस्सा। प्रदेश में 60 में से 40 विधायक मैतेई समुदाय के ही है और इस समुदाय के लोगों कहना है कि इन विधायकों ने पीएम मोदी तक उनकी बात ठीक से नहीं पहुंचाई। मणिपुर में मैतेई समुदाय और कुकी जनजाति के बीच जो विभाजन हुआ है उसको कम करने की जिम्मेदारी असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा को दी गई है। हालांकि इस फैसले को लेकर भी मैतेई समुदाय के भीतर असंतोष बताया जा रहा है।

इस समुदाय के कुछ लोगों का कहना है कि वह उत्तर पूर्वी राज्यों की आवाज के प्रतिनिध नहीं हैं। मणिपुर हाई कोर्ट का एक आदेश था जिसमें सरकार को निर्देश दिया गया कि दस साल पुरानी सिफारिश को लागू करे जिसमें गैर जनजाति मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई। इसके बाद मणिपुर में मैतेई और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुकी समुदाय के बीच हिंसा भड़क उठी।

पिछले साल मणिपुर में बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की थी। मणिपुर में 60 सदस्यीय विधानसभा में पूर्ण बहुमत हासिल करने वाली कांग्रेस के बाद दूसरी पार्टी बनी। बीजेपी की जीत कई मायनों में खास थी। बीजेपी की इस जीत के पीछे कई कारण गिनाए गए। राजनीति के जानकारों ने कहा कि बीजेपी यहां लोगों को अपने काम के बारे में समझाने में सफल रही। इसके साथ ही पहाड़ी और घाटी के बीच जो टकराव था उसको भी भी काफी हद तक सुलझाया गया। लेकिन अब पार्टी के सामने राज्य में यह एक नई चुनौती है।

इधर मणिपुर मामले को लेकर विपक्षी दल पीएम मोदी पर निशाना साध रहे हैं। कांग्रेस ने कहा कि पीएम मोदी मणिपुर पर मौन क्यों हैं। आम आदमी पार्टी मणिपुर हिंसा के बीच बीजेपी की विकास यात्रा को लेकर उसकी आलोचना की है। टीएमसी के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने मणिपुर में मौजूदा हिंसा की स्थिति के आकलन के लिए गृह मामलों पर संसद की स्थायी समिति की तत्काल बैठक बुलाने की मांग की है। साथ ही कहा कि जमीनी हकीकत को समझने और स्थिति की वास्तविक जानकारी होना आवश्यक है।

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